गुरु लक्ष्मीङ्कर​ की कहानी

Court ladies meet a yogini – Wikimedia Commons

तिब्बत और भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सम्बन्धकई प्रकार के हैं |  अतीत में, बहुत सी भारतीय साहित्यिक और आध्यात्मिक शास्त्रों को तिब्बत भेजा गया था, और उनके तिब्बती भाषा अनुवाद भी किया गया था |  इनमें से बौद्ध ग्रन्थ हैं, जैसे के नागार्जुन, शान्त​रक्षित, और कमलशील के लेखन |  साथ ही व्याकरण के शास्त्र हैं, जो तिब्बती भाषाविज्ञान का विकास को प्रेरित किया |  इसके अलावा, काव्य हैं, जैसे के कालिदास की उत्कृष्ट खण्डकाव्य ‘मेघदूत’ |

‘चौरासी महासिद्धों की जीवन-कथाएं’ एक ऐसी साहित्यिक रचना है, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाले बौद्ध तान्त्रिक​ परम्परा के महान व्यक्तियों का वर्णन करती है |  यह ग्रन्थ, जिसे मूल रूप से ‘चतुरशीतिसिद्धप्रवृत्ति’ कहा जाता था, संस्कृत में बारहवीं शताब्दी के बिहारी बौद्ध भिक्षु अभयदत्तश्री द्वारा रचित किया गया है |  विशेष रूप से, यह तान्त्रिक​ बौद्ध की वज्रयान परम्परा से जुड़ा है |  बाद में, इस पूरी रचना को तिब्बती में अनुवाद किया गया था, और दुःख की बात है की मूल संस्कृत शास्त्र अब मौजूद नहीं है |  इस स्थिति के कारण, आजकल भारत में इन महान भारतीय आध्यात्मिक व्यक्तियों के बारे इतनी जागरूकता नहीं है, हालांकि वे तिब्बती बौद्ध परम्परा में प्रसिद्ध हैं |

गुरु लक्ष्मीङ्कर उन चौरासी महासिद्धों में से एक हैं, जिनके बारे इस ग्रन्थ में लिखा गया है |  यहाँ मैं तिब्बती भाषा से हिन्दी में अनुवाद करके गुरु लक्ष्मीङ्कर की कहानी प्रस्तुत करता हूँ |  ऐसा लगता है कि कहानी के कुछ हिस्से तिब्बती रूपान्तर में थोड़े अस्पष्ट हुए हैं, और शायद संस्कृत से अनुवाद करते समय में कुछ खो गया है |  मैंने इसका सीधा अनुवाद किया है, जैसे कि यह मौजूदा तिब्बती रूपान्तर में है, बिना कुछ ठीक करने की कोशिश किए |  उम्मीद है कि यह भारतीय साहित्यिक विरासत के उस बहुत महत्वपूर्ण हिस्से का कुछ सन्केत​ देगा, जो मूल भारतीय भाषा में खो गया है, और जिसे आधुनिक भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य में काफ़ी हद तक भुला दिया गया है |

मैं अपने तिब्बती अध्यापक को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिनके साथ मैंने यह कहानी पढ़ी।


यह कहानी गुरु लक्ष्मीङ्कर के बारे में है, जो राजा इन्द्रभूति की बहन थी |  वह सम्भोला नगर में रहते थे, जिसमें ढाई लाख लोग रहते थे, और ओड्डियान​ में है |  वह एक कुलीन वंश से थी, और उसने छोटी उम्र से ही कई अच्छे गुण प्रदर्शित किए |  उसने महासिद्ध लवप और अन्य गुरुओं से कई धार्मिक शिक्षाएँ सुनी, और कई तन्त्रों को भी समझती थी |  तब उसके भाई राजा इन्द्र​भूति ने उसकी शादी जलेन्द्र​ के पुत्र के साथ पक्की कर दी थी | 

जब एक दूत उसे लेने आया, तो वह अपने साथ बहुत से धर्म जानने वाले लोगों को लेकर और अपार धन लेकर लङ्कापुरी चली गई |  लेकिन उसे तुरन्त राजधानी में आमन्त्रित नहीं किया गया, क्योंकि शुभ मुहूर्त नहीं था |  प्रतीक्षा करते हुए, उसने स्थानीय लोगों को देखा जो सभी ग़ैर-बौद्ध थे, इसलिए उसे दुःख हुआ |

तब राजकुमार के सेवक, जो शिकार से लौट आ रहे थे, और बहुत सारा मांस लेकर आ रहे थे, उसके पास आए |  उसने पूछा, “ये सब लोग कौन हैं? उन्होंने क्या कुछ मारा है? वे कहां से आ रहे हैं? क्या हो रहा है?”  सेवकों ने उत्तर दिया, “हमारे राजा जी, जो आपके पति है, उन्हों ने हमें जङ्गली जानवरों को मारने के लिए भेजा था |”  जब उसने पेट भरने के लिए भोजन की ऐसी बातें सुनीं, तो वह बहुत उदास हो गई |  उसने सोचा, “मेरे भाई, एक धर्म-रक्षक राजा, उन्हों ने मुझे इस ग़ैर-बौद्ध व्यक्ति के पास भेजा …”, और उसी क्षण में वह बेहोश हो गई |

जब वह बेहोशी से वापस होश में आयी, तब उसने अपनी सारी दौलत नागरिकों को दी, और अपने आभूषण सभी नौकरों को दे दिए |  फिर वह वापस अपने जन्मस्थान की ओर मुड़ी |  लेकिन फिर उसने कहा, “अगले दस दिनों तक, मेरे पास किसी को मत भेजो” |  फिर वह एक छोटे से घर में रहने चली गई |  उसने अपने शरीर पर तेल और कोयला लगाया और अपने बाल काट दिए |  उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए और उसने पागल होने का नाटक किया |  उसने अपनी दिल की चाहत पे भरोसा रखा |  इस बात से राजा और अन्य लोग परेशान थे, इसलिए चिकित्सकों और अन्य लोगों ने उसका इलाज करने की कोशिश की |  लेकिन वह जल्दी से क्रोधित हो जाती थी और अपने पास आने वाले किसी भी व्यक्ति को मारती थी |  तब उन्होंने उसके भाई, जो ख़ुशी से जी रहा था, उसके पास एक दूत भेजा |  उसका मन सांसारिक वस्तुओं से हट गया और उसने उसके पास जाने के बारे में सोचा |

उस पल से, वह लङ्कापुरी में एक पागल महिला की तरह तपस्या करने लगी |  वह बचा हुआ खाना खाती थी, वह क़ब्रिस्तान में सोती थी, और वह धर्म अभ्यास करती थी |  ऐसा करने के सात साल बाद उसे मोक्ष मिल गया |  राजा के सफ़ाईकर्मियों में से एक ने उसकी पूजा करनी शुरू की, इसलिए उसने उस सफ़ाई वाले को तान्त्रिक​ शिक्षण भी दिया, और उसे अच्छे गुण मिले, लेकिन अन्य लोगों ने ध्यान नहीं दिया |

फिर एक दिन राजा जलेन्द्र​ अपने साथियों के साथ शिकार करने गए, लेकिन उन्हें पता नहीं चला कि कब शाम हो चुकी थी |  इसलिए उन्हें शिकार करते हुए सो जाना पड़ा और अगले दिन वे ग़लत रास्ते पर भटक गए |  उस शाम, क्योंकि वह अपने राज्य में वापस नहीं जा पा रहे थे, उनके पास सोने के लिए कोई जगह नहीं थी |  फिर वह लक्ष्मीङ्कर की गुफा में भटक गए |  पहले तो उन्हों ने सोचा, “यह पागल औरत क्या कर रही है?”

फिर उन्हों ने देखा कि वह बैठी हुई अपने शरीर से प्रकाश बिखेर रही थी, और देवियाँ उसे चारों ओर से घेरे हुए थीं, और वे उसकी पूजा कर रहीं थी |  उन्होंने शुद्ध भक्ति महसूस की |  बाद में, उस शाम, वह अपने देश वापस चले गए |

फिर राजा उसके पास वापस लौट आया और प्रणाम किया |  लक्ष्मीङ्कर ने उनसे पूछा, “तुम मेरे जैसी स्त्री को क्यों नमन करते हो?”  राजा ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके गुण अच्छे हैं, इसलिए मैं आपसे दीक्षा माँग रहा हूँ |”

लक्ष्मीङ्कर ने कहा, “संसार दुःख से भरा है, और इसके सभी प्राणियों में कोई एक भी ख़ुश नहीं है |  इसके अलावा, जन्म, वृद्धावस्था, बीमारी, मृत्यु आदि के कारण, सर्वश्रेष्ठ प्राणी, देवता और मनुष्य, भी प्रभावित होते हैं |  तीनों लोक तो दुःखी होते हैं |  इधर-उधर खाके, आपको हमेशा भूख लगती रहेगी |  गर्मी और सर्दी के कारण असहनीय दर्द होता रहेगा |  इसलिए, राजा जी, मुक्ति के महान आनन्द की तलाश करें |”

फिर लक्ष्मीङ्कर ने कहा, “आप मेरे शिष्य नहीं हैं, लेकिन आपका एक सफ़ाई वाला है, जो मेरा एक शिष्य है, तो वह आपका कल्याणमित्र होगा |

तब राजा ने कहा, “मेरे पास सफ़ाई करनेवाले नौकर बहुत हैं, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि वह कौन है?”

लक्ष्मीङ्कर ने उत्तर दिया, “सफ़ाई करने के बाद, वह प्राणियों को भोजन दे रहा होगा |  यह उसकी निशानी समझो |”

राजा ने सफ़ाई वाले की खोज ठीक से की, और वह सफ़ाई वाला वास्तव में ऐसा कर रहा था, इसलिए राजा ने उसे आमन्त्रित किया |  तब राजा ने उसे गद्दी पर बिठाकर उसका आदर किया, और राजा ने उस से उपदेश माँगा |  सफ़ाई वाले ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे अपने स्वयं के पुनर्जन्म का मार्गदर्शन करने की शक्ति दी |  ‘चर्य​-तन्त्र​’ और ‘उत्तर-तन्त्र​’ दोनों सिखाने के बाद, अन्त​ में, सफ़ाई वाला और राजा इन्द्र​भूति की बहन दोनों ने लङ्कापुरी में चमत्कार के प्रदर्शन किये |  फिर वे उन्हीं शरीरों में डाकिनी क्षेत्र में चले गए |


Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s